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   हकलाने वाले व्यवित के विभिन्न चरण

1-  पहला चरण  -छोटी उम्र में बच्चा अपनी  पर विशेष ध्यान नही देता है लेकिन जैसे जैसे वह समझदार व बड़ा होता है ,अपनी समस्या समझने लगता है ,बच्चा यदि नही भी हकलाता लेकिन यदि उसके दोस्त घर के मोहल्ले में लोग बार बार बोलते है कि तुम तेज बोलते हो ,तुम्हारी आवाज समझ में नही आती ,धीरे -धीरे बोला करो ,आरा  म से बोला करो तो बच्चे के मन में धीरे -धीरे यह अनुभव होने लगता है कि मैं हकलाता हूँ। यही पहला चरण कहलाता।

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 2-दूसरा चरण-अब वह समाज के सामने आता है उसकी हॉकी उड़ाई जाती है। लगातार अटककर बोलने से बच्चे के दिमाग में यह बात आ जाती है कि यह हकलाता है। अथार्त बच्चे के दिमाग में हकलाने का दुगर्मी भय आ जाता है। यही दूसरा चरण कहलाता है।

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3-तीसरा चरण- इस भय को हम और आप स्टेमरिग सायकोलॉजी कहते है। उम्र बढ़ने के साथ साथ बच्चा हकलाता जाता है तथा उसकी सायकोलॉजी बढती जाती है कुछ बच्चे तो बड़े होने पर भी अपनी समस्या पर विशेष ध्यान नही देते है ,उनमें हकलाने की गहराई (साइकोलॉजी )अधिक नही बढ़ती है। धीरे -धीरे ठीक होने की संभावना भी होती है। हर माता -पिता और अन्य सभी व्यवित्यों सेअनुरोध है कि हकलाने वाले को बार -बार उसको न टोके और न ही उसकी हाँकी उड़ाये। इससे उसकी संयकोलॉजी कम होगी। जब बच्चा समझदार हो जाता है ,अपनी समस्या पर विशेष ध्यान देने लगता है। जिस शब्द पर वह अटकता है ,उस शब्द में बोलने की जब भी यहाँ आये तब स्पीड बढ़ जाती है और वह उसे ही कठिन समझने लगता है। इसतरह वह अपने दिमाग में कुछ कठिन अक्षर छटलेता है। यही तीसरा चरण कहलाता है।

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 4- चौथा चरण- अब वह धीरे -धीरे स्पीच आग्रन को सिकोड़ कर आँखे दबाकर मुँह अधिक खोल कर बंद कर बात करने लगने गता है। इसको चौथा चरण कहते है। 

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5- पांचवा चरण- इसको बाद यदि आपकी मेमोरी कमजोर बोलते समय मुँह से थूक आना ,आँखे मिलाकर बात न कर पाना एवं उपरोक्त सभी लक्ष्ण पाये जाने वाले लोगों को पांचवा चरण कहलाता है।

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 6- छठवे चरण जब आप पांचवे चरण से छठवे चरण में प्रवेश करते है तो कई डाक्टरों ,स्पीच थैरपिस्टो ,साइकोलॉजिस्टो से परामर्श करके थक जाते है और हारकर बैठ जाते है। लगभग सलाहकार यही सीखते है कि धीरे -धीरे बोला ,रिलैक्स होकर बोलो लेकिन आप यह रियल लाइफ में नही कर पते है। कुछ दिन करते है ,कुछ दिन बाद फिर उसी ढर्रे में चलने लगते है ,अब आपके दिमाग में सभी स्पीच थैरपिस्ट ,डाक्टर्स ,साइकोलॉजिस्ट का विश्वास भी टूटने लगता है। इस स्टेज की बेरोजगारी ,आथिर्क तंगी ,सामाजिक -पारिवारिक परिसिथतिया काबू में नही हों होन से अधिक तनाव महसूस होता है। इस सिथति से गुजरने वाले व्यवितयो को छठवे चरण का हकलाना होता है। 

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आप सभी घर वाले जानते है कि हमारा बच्चा जल्दी बोलता है और इसीलिये अटकता है तथा को धीरे -धीरे बोलने के लिये भी बार -बार टोकते है लेकिन अब बच्चा चाहकर भी धीरे नही बोल सकता क्योंकि आदत पक्की हों चुकी है। धीरे बोलने या शुध्द बोलने के लिये आप कहेंगे तो बच्चे के दिमाग की सायकोलॉजी और बढ़ेगी। Respiration जाता है।  कमजोर है ,स्पीच फ़ास्ट है ,श्वास व स्पीच का तालमेल बिगड़ा है तथा दिमाग में साइकोलॉजी है। ये सभी कमजोरिया सेन्टर के नियमों का पालन करके ठीक हो सकती है। who के अनुसार माँ के बड़े बच्चे में 80 %एवं अन्य बच्चे में 20 %यह रोग होता है। यह रोग लड़को में अधिक तथा लड़कियों में कम होता है। जो व्यवित बाएँ हाथ से मुख्य कार्य जैसे लिखना ,खाना ,मारना आदि करते है ,उन्हें हकलाहट की प्राब्लम अधिक होता  है
                                   

 मैं आपको स्वीकार्य करने के कुछ नियम बता रहा हूँ।


 1 . पहले आप अकेले मेँ कहना सीखिए कि मैं हकलाता हूँ। 1 - 2 बार कहने से काम नही चलेगा। हमेशा लगातार जब तक आप अच्छा फील नहीं करते हैं। तब तक यह कहते रहे , दिमाग को संदेश देते रहें कि मैं हकलाता हूँ। यहाँ पर एक निगेटिव एनर्जी आपके दिमाग में बनेगी और आप से कहेगी यह क्या बेवकूफी कर रहे हो ऐसा कभी नही होगा। यह संभव नही !यह कहना छोड़ दो आप इस निगेटिभ इनर्जी की विल्कुल न माने और लगातार यह कहते रहें कि मैं हकलाता हूँ। धीरे -धीरे यह निगेटिव इनर्जी बनना बंद हो जाएगी और आपको यह यह कहने में जरा भी संकोच नही होगा कि मैं हकलाता हूँ।

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2 . जब यह संकोच खत्म हो जाय तब आप पेड़ो से , देवताओं के सामने ,गाय ,भैंस , बकरी ,दीवाल से कहें

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3 . इसके बाद आप धीरे -धीरे अपने घर में पापा मम्मी या छोटे भाई बहन से आप बीच बीच में सहज भाव से कहें मैं हकलाता हूँ। मैं फिर बोलना चाहूँगा कि यह एक दो दिन का काम नही है लगातार कहते रहे। इससे आपको अंदर खुलापन आएगा और सारा दिन रटना नहीं हैं और न ही चिल्ला चिल्ला कर कहना है। दिन में दो तीन बार सरल सहज भाव से जैसे आप कहते हैं मैं प्यासा हूँ ,पानी लाओ। मैं  भूखा हूँ, खानालाओ। इस प्रकार बिल्कुल सरल भाव से कहें मैं हकलाता हूँ। यहाँ पर एक बात बताना और जरूरी हैं ,कि केवल मैं हकलाता हूँ। कहने से काम नही चलेगा बलिक थोड़ा हकलाना भी है। जानबूझ कर करें। इसे Voluntary stammering "मैं हकलाता हूँ। "ऐसा बोलें मैं मैं मैं हकलाता हू। यहाँ पर यह बात ध्यान में रखिए कि जब आप हकलाते हैं ,तब आपकी आवाज आपके कन्ट्रोल मे नही होती है। लेकिन जब आप स्वीकार्य करें तब सहज सरल भाव से स्पीड स्पीच ऑर्गन को कन्ट्रोल करके कहे मैं मैं मैं हकलाता हूँ।  voluntary stammering के बारे में आगे विस्तार से बताया जायेगा।

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4 . जब आप अपने आप से ,घर मेँ ,छोटे बच्चो से बिना झिझक शर्म संकेज आत्मग्लानी के यह कहने मे सक्षम हो जाये कि मैं मैं मैं ह ह ह हकलाता हूँ। तब आप अपने अच्छे मित्रो से भी कहना प्रारंभ कीजिए। और बीच -बीच में voluntary stammering करते रहें। जैसे में मेरा नाम सू सू सूरज हैं। आ आपका ना नाम क्या क्या हैं। यह आपको थोड़ा मुशिकल और निगेटिव फील हो सकता हैं। लेकिन करते रहें अवश्य जीत आपकी होगी।                Acceptance के फायदे       जब आप किसी से कहते हैं, कि मैं हकलाता हूँ। तो आपका मन कहता है। अब मैं क्यो छुपाऊ !अब तो इसे पता चल ही गया हैं। कि मै हकलाता हूँ।
 जब कभी आप दूसरी बार उस व्यवित से मिलते हैं जिसके सामने आपने कहा था कि मैं  हकलाता हूँ। तब आपका मन कहेगा पिछली बार मैं इनसे कहा था कि मैं हकलाता हूँ। इन्हें अवश्य याद होगा अब मैं क्या छुपाऊ। चाहे वे भूल ही क्यो न गये हों।

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5 . हमारे शरीर में कार्य करने कि बहुत सारी एनर्जी होती है और हम शब्दों को बदलने ,शब्द को आगे पीछे करने छुपाने में खर्च कर देते हैं और अन्य कार्यो में पीछे रह जाते हैं। स्वीकार्य करने से आपकी एनर्जी बेकार खर्च नही होती। और आप हर काम मे सफल होने के लिए तैयार रहते हैं। 4 . स्वीकार्य करने के बाद टेन्शन कोध हीन भावना में कमी आती हैं। और
  पिंजड़े मे बन्द तोता उड़ने के लिए तैयार 

 

 

  

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