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         हकलाने वाले लोगो को ध्यान क्यों करना आवश्यक होता है  

   Why it is important to remember people who have stammers

  

 

 

 

 

 

 

 


It has often been seen that, a stutter, a person suffers more stress and anxiety than the person, the process of thinking of them is higher than the person, the frequency of their brain is high, the day beta frequency 15 -18 is a hazard, due to such a high frequency, any person will be in stress hyper tension, if we mediate before sleeping, frankiewici 8 -12 becomes fatal, during sleep 0-4 Time Tjh, while the dream is 4-8 Htjh, for this, we should meditation

 

प्रायः देखा गया हैकि एक स्टम्मेरिंग  पीड़त व्यक्ति एक आप व्यक्ति की तुलना में अधिक तनाव और चिंता से  पीड़ित होता है , इनकी सोचने की प्रोसेस आप आदमी से अधिक होती है  इनके दिमाग की फ्रेक्वेंसी अधिक होती है पुरे दिन बीटा फ्रीक्वेंसी १५-१८ हटज़ होती है इतनी अधिक फ्रीक्वेंसी के करण कोई भी व्यक्ति  तनाव हाइपर टेंसन में रहेगा,  यदि हम नीद के पहले मेडिशन कर लेते है तो  फ्रेंक्विकी ८ -१२ हटज़ हो जाती है  सोते समय ०-४ हटज़  होती है जबकि स्वप्न के समय 4-८ हटज़ होती है  अर्थात हम जितना अधिक मैडिटेशन करते है उतना अधिक शांत प्रवृत्ति के इंसान बनते चले जाते है ऐसी लिए हमें मैडिटेशन करना चाहिए   

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आज योग और ध्यान (Meditation) बहुत ही सामान्य शब्द हो गए हैं । हम सभी इससे भली भांति परिचित हैं और हममें से काफी लोग योग करते भी है । टी.वी. और इंटरनेट ने इसमें काफी सहायता की है । पर अक्सर यही देखने मे आता है कि हम इसकी शुरुआत तो जोर-शोर से करते हैं पर धीरे-धीरे इस उत्साह में कमी होती जाती है ओर हम इसे त्याग कर सुबह की सैर, दौड़, जिम जाना आदि शुरु कर देते है, जिसमें थोड़ा नयापन और आधुनिकता से जुड़ाव महसूस होता है । आमतौर पर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम ध्यान करते समय बोरियत का अनुभव करने लगते हैं, बोरियत इसलिए क्योंकि कुछ नया नहीं, कुछ रोचक नहीं, कुछ मसालेदार नही । पर यकीन मानिए इससे रोचक, मजेदार और अभूतपूर्व उल्लास आपको कहीं नहीं मिल सकता, बशर्ते आपको पता हो कि करना क्या है, और कैसे है । ध्यान लगाने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आपका शरीर बेजान या मृत हो गया है जैसे नींद में होता है। यह ध्यातव्य है – “निद्रा अचेतन ध्यान है और ध्यान सचेतन निद्रा (Sleep is unconscious meditation and meditation is conscious sleep)।”

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम सब खुशियों के पीछे भाग रहे हैं । एक विद्यार्थी अच्छें नंबरों से पास होने के लिए चिंतित रहता है, वह पास हो जाता है, पर खुशी नही होती, चिंता होती है, सोचता है जब नौकरी लग जाएगी तो खुशियां मिलेगी, नौकरी भी मिल जाती है, फिर भी वह आगे सोचता है ,प्रमोशन होने पर खुशिया मिलेगी पर उसे और आगे की चिंता होती है । वह हमेशा भविष्य की खुशियॉं पाने में लगा रहता है और वर्तमान की खुशियों को व्यर्थ जाने देता है, वह कभी यह नहीं समझ पाता कि खुशियॉं कहीं बाहर नहीं , किसी भविष्यव में नहीं बल्कि अभी है, यहीं है, उसके अंदर है, उसके अंतर्मन की शांति मे है, और इस खुशी को लगातार महसूस कराने वाला माध्यम ही ध्यान है । योग का अर्थ है – आत्माा को परमात्मा से जोड़ना । ध्यान में जाकर ही इस कार्य को किया जा सकता है ।

संत कबीरदास ने कहा है – “ तेरा साई तुज्झ मे, ज्यों पुहुपन मे वास ।“

ज्ञानमार्गी शाखा के इतने बड़े संत यह बात यूं ही नहीं कह गए हैं। सच है हमारे शरीर के अंदर विराजमान आत्मा, उस परमात्मा का ही एक अंश है, तो जब परमात्मा सर्वज्ञ हैं, सर्वव्यापी हैं, सर्वशक्तिशाली हैं, तो हम क्यों नहीं। जिस प्रकार हीरे का एक टुकड़ा भी परमाणु सरंचना में बड़े हीरे के समान ही होगा, ठीक वैसे ही उस परमात्मा की शक्तियाँ भी हमारे अंदर है, जरूरत है उसे जानने की, जिसने जाना वो ही उसका उपयोग कर सकता है, अन्यथा एक अज्ञानी की तरह वह हीरे को बस एक चमकदार पत्थर समझकर फेंक देगा। इन शक्तियों को ध्यान मे जाकर ही जाना जा सकता है।

ध्यान में जाने के लिए हमें बाहरी दुनिया के शोरगुल से हटकर अपने अन्तर्मन की आवाज को सुनना होगा। अब अन्तर्मन की आवाज कैसे सुनी जाय, बहुत आसान है, अगर हम बाहर की आवाजों को सुनना बंद कर दे तो जो आवाज रह जाएगी वही अन्तर्मन की आवाज है और इसे सुनना ही ध्यान या समाधी है। किन्तु बाहर की आवाज के साथ-साथ कुछ आवाजें या कहिए शोरगुल हमारे अंदर भी चल रही होती है। आपने आँख और कान तो बंद कर लिया पर दिमाग का सोचना अब भी जारी है- “कल ऑफिस जल्दी जाना है, घर का राशन खत्म हो गया, पत्नी को आज बाहर खाने पर ले जाना है “ आदि आदि बातें जो हमारा ध्यान अपनी ओर भटकाती है किन्तु इसे दूर करना भी कठिन नहीं। जब आप अपने कान बंद करते है, तो आपको दो आवाजें सुनाई देगी, एक आपके धड़कन की और दूसरी साँसो की । इन दो के अलावा एक तीसरी आवाज भी है और हमे अपना ध्यान उसी आवाज की ओर केन्द्रित करना है । यह आवाज बिलकुल झिंगुर की तरह होती है, यकीन नहीं आता, तो आप करके देखियेगा । धीरे धीरे आपको अन्य आवाज़े भी सुनाई देगी जो आरंभ मे तो तेज न होने के कारण सुनाई नहीं देगी पर जैसे- जैसे आप ध्यान करते जाएंगे ये आवाज़े स्पष्ट होती जाएंगी, कभी आप धीमी गति से बह रहे नदी के जल प्रवाह की आवाज सुनेंगे तो कभी रिमझिम गिरती बारिश के बूंदों की । वे सारी आवाजें जो आप बाहर की दुनिया मे सुनते है, आप को अपने अंदर भी सुनाई देंगी और धीरे धीरे कब आप आत्म- अनुभूति (Self Realization) की ओर कदम बढ़ा चुके होंगे आपको पता भी नहीं चलेगा।

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                                        ध्यान लगाने की विधि

अब हम ध्यान लगाने की विधि देखेंगे । पर याद रहे, ध्यान मे जाना एक मजेदार कार्य होना चाहिए ना की एक यातना देने वाला (Meditation should not be a torture, it should be a fun)। जैसे आपने कभी सुना होगा , दोनों भौहों के बीच ध्यान लगाना चाहिए किन्तु थोड़ी देर बाद ही इससे सर दर्द होने लगता है और हम कुछ मिनट बाद ऊब जाते है ।

ध्यान लगाने के लिए निम्न प्रक्रिया का पालन करें :-

1. एक आरामदायक व शांत जगह का चुनाव करें , जो कोलाहल से दूर हो और जहाँ आप आराम से बैठ सकें । आप पालथी मारकर भी बैठ सकते या फिर कुर्सी पर बैठे बैठे भी ध्यान लगा सकते है।

2. आँखें बंद हो और कानो मे ईयर प्लग लगाए किसी भी दवा दुकान मे 15 रुपये की कीमत मे नारंगी रंग का ईयर प्लग खरीद लें,न मिलने पर रुई का उपयोग भी कर सकते हैं।

3. दस लंबी साँसे ले धीरे धीरे, आराम से और गहरी साँस ले और उसी तरह आराम से साँस छोंड़े । साँस छोड़ते समय दस से एक की उल्टी गिनती गिनें, याद रहे गिनती सिर्फ साँसे छोड़ते समय गिने, लेते समय नहीं।

4. अपने अंदर की आवाज पर ध्यान केन्द्रित करें मस्तिष्क में चल रही आवाजों को सिर्फ सुनें, उनका विश्लेषण कदापि न करे, सुननें की चाहत भी न करें, वो खुद सुनाई देंगी, मन शांत रखें।

5. अपनी सोच को भटकने न दें अगर कभी सोच भटकती है, तो परेशान न हो, खीझे नहीं, प्यार से मुस्कुराकर उन्हे वापस अपनी ओर ले आइये। वैसे भी एक बार आपको मस्तिष्क में चल रही आवाज़े सुनाई देने लगी तो खुद –ब-खुद अपना का ध्यान वापस वहीं आ जाएगा और आपका दिमाग बाहरी बातों को सोचना बंद कर देगा।

ये तो रहा ध्यान का तरीका, पर इसका उचित प्रतिफल जल्दी पाने के लिए आपको अपने शरीर को निर्मल और स्वच्छ करना होगा । दो तरह से यह किया जा सकता है, पहला अपने शरीर को बाहर से निर्मल करना होगा( detoxification), इसके लिए आप Oil Pulling, जिसका गूगल पर विस्तार से उल्लेख है, कर सकते हैं, सुबह उठकर हल्के गरम जल मे नींबू-नमक डालकर पिये, नियमित रूप से व्यायाम करिए, शारीरिक खेलो में हिस्सा लीजिये, जितना हो सके अपने आप को सक्रिय रखिए। ये तो हुआ बाहर से स्वच्छ रखना, शरीर की अंदरूनी सफाई यानि विचारों को स्वच्छ रखने के लिए, अच्छी पुस्तकें पढें, मंदिर , मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा जहां भी आपके मन को शांति मिलती हो, वहाँ जाएँ, अच्छी विचारधारा वाले लोगों के साथ मिलें अच्छी भाषा का व्यवहार करें, अच्छा सोचें। इससे आपको अपना लक्ष्य प्राप्त करने मे काफी सहायता मिलेगी।

     हकलाने वाले लोगो  के योग और प्राणायाम 

Yoga and pranayama of stammering people

भ्रामरी प्राणायाम का नाम भारत में पाई जाने वाली बढ़ई मधुमक्खी से प्रेरित है जिसे भ्रामरी भी कहा जाता है| इस प्राणायाम को करने के पश्चात व्यक्ति का मन तुरंत शांत हो जाता है| इस प्राणायाम के अभ्यास द्वारा, किसी भी व्यक्ति का मन, क्रोध, चिंता व निराशा से मुक्त हो जाता है| यह एक साधारण प्रक्रिया है जिसको घर य ऑफिस, कहीं पर भी किया जा सकता है| यह प्राणायाम चिंता-मुक्त होने का सबसे अच्छा विकल्प है|

इस प्राणायाम में साँस छोड़ते हुए ऐसा प्रतीत होता है की आप किसी बढ़ई मधुमक्खी की ध्वनि निकाल रहे हैं| जो इसके नाम का स्पष्टीकरण करता है|

भ्रामरी प्राणायाम का वैज्ञानिक तात्पर्य

यह प्राणायाम मस्तिष्क की तंत्रिकाओं को आराम देता है और मस्तिष्क के हिस्से को विशेष लाभ प्रदान करता है| मधु-मक्खी की ध्वनि की तरंगे मन को प्राकृतिक शांति प्रदान करती हैं|

 

भ्रामरी प्राणायाम करने की प्रक्रिया |How to do Bhramari pranayama

  1. किसी भी शांत वातावरण, जहाँ पर हवा का प्रवाह अच्छा हो बैठ जाएँ| अपने चेहरे पर मुस्कान को बनाए रखें|

  2. कुछ समय के लिए अपनी आँखों को बंद रखें| अपने शरीर में शांति व तरंगो को महसूस करें|

  3. तर्जनी ऊँगली को अपने कानों पर रखें| आपके कान व गाल की त्वचा के बीच में एक उपास्थि है| वहाँ अपनी ऊँगली को रखें|

  4. एक लंबी गहरी साँस ले और साँस छोड़ते हुए, धीरे से उपास्थि को दबाएँ| आप उपास्थि को दबाए हुए रख सकते हैं अथवा ऊँगली से पुनः दबा य छोड़ सकते हैं| यह प्रक्रिया करते हुए लंबी भिनभिनाने वाली (मधुमख्खी जैसे) आवाज़ निकालें|

  5. आप नीची ध्वनि से भी आवाज़ निकाल सकते हो परंतु ऊँची ध्वनि निकलना अधिक लाभदायक है|

  6. पुनः लंबी गहरी साँस ले और इस प्रक्रिया को ३-४ बार दोहराएँ|

भ्रामरी प्राणायाम से पहले और बाद में करने वाले कुछ योगासन

यह प्राणायाम व्यायाम करने के पश्चात् करना चाहिए परंतु यह कभी भी बाद में भी किया जा सकता है|

भ्रामरी प्राणायाम को करने के अन्य तरीके | Variations in Bhramari pranayama

आप भ्रामरी प्राणायाम अपनी पीठ के बल लेट कर अथवा अपनी दाहिनी ओर करवट लेकर भी कर सकते है| जब आप अपनी पीठ के बल लेते हो तो सिर्फ गिलगिलने की आवाज़ निकाले| तर्जनी ऊँगली को कण पर रखने के बारे में न सोचें |भ्रामरी प्राणायाम दिन में ३-४ बार किया जा सकता है|

भ्रामरी प्राणायाम वीडियो | Bhramari pranayama video

 

भ्रामरी प्राणायाम के लाभ |Benefits of Bhramari pranayama

  1. यह प्राणायाम व्यक्ति को चिंता, क्रोध व उत्तेजना से मुक्त करता है| हाइपरटेंशन के मरीजों के लिए यह प्राणायाम की प्रक्रिया अत्यंत लाभदायक है|

  2. यदि आपको अधिक गर्मी लग रही है या सिरदर्द हो रहा है तो यह प्राणायाम करना लाभदायक है|

  3. माइग्रेन के रोगियों के लिए यह प्राणायाम लाभदायक है|

  4. इस प्राणायाम के अभ्यास से बुद्धि तीक्ष्ण होती है|

  5. आत्मविश्वास बढ़ता है|

  6. उच्च रक्त-चाप सामान्य हो जाता है|

  7. ध्यान द्वारा मन शांत हो जाता है|

भ्रामरी प्राणायाम करते समय निमंलिखित चीज़ों पर ध्यान दे

  1. ध्यान दे की आप अपनी ऊँगली उपास्थि पर ही रखें, कान पर न रखें|

  2. उपास्थि को ज़्यादा ज़ोर से न दबाएँ| धीरे से ऊँगली को दबाएँ|

  3. भिनभिनाने वाली आवाज़ निकलते हुए, अपने मुँह को बंद रखें|

  4. भ्रामरी प्राणायाम करते समय आप अपनी उँगलियों को षण्मुखी मुद्रा में भी रख सकते हैं|

  5. प्राणायाम करते समय अपने चहरे पर दबाव न डालें

  6. इस प्राणायाम तो ३-४ से अधिक न करें|

अंतर्विरोध | Contraindications

भ्रामरी प्राणायाम करने के कोई भी अंतर्विरोध नही हैं| बच्चे से लेकर वृद्ध व्यक्ति तक कोई भी यह प्राणायाम किसी भी योग प्रशिक्षक द्वारा सीख सकता है| यह प्राणायाम खाली पेट ही करना चाहिए|

यद्यपि योगाभ्यास शरीर और मन के लिए बहुत फ़ायदेमंद है, फिर भी इसे दवा के बदले आजमाना उचित नही है| योगासनों का अभ्यास आर्ट ऑफ लिविंग योग के प्रशिक्षक की निगरानी में ही करना सर्वथा लाभप्रद होगा| अगर कोई शारीरिक या मानसिक खामी हो, तो वैद्यकीय सलाह और श्री श्री योग (Sri Sri Yoga) के प्रशिक्षक की निगरानी में ही करना सर्वथा लाभप्रद होगा| अगर कोई शारीरिक या मानसिक खामी हो, तो वैद्यकीय सलाह और आर्ट ऑफ लिविंग योग के प्रशिक्षक की अनुमति के पश्चात ही योगाभ्यास करें| श्री श्री योग कोर्स आपके नज़दीकी आर्ट ऑफ लिविंग केंद्रमें आप सीखसकते हैं| अगर आप विविध कोर्सों के बारे में जानकारी पाना चाहते हैं या सुझाव देना चाहते हैं तो हमें संपर्क करें 

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