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                   मेरा अनुभव और प्रभाशाली सामाधान 

                               (  आप रोज़ एक नकली भूमिका निभा रहे है ?)

यदि एक हकलानेवाले व्यक्ति के रूप में आपके अनुभव मेरे जैसे है, तो आपने जरुर जीवन का एक बड़ा हिस्सा बिताया होगा, इस तरह के सुझाव सुनते सुनते : "एक गहरी साँस लो", "पहले सोच लो क्या कहना है, फिर बोलो" - और शायद यह भी: "बात करने के लिए अपने मुंह में एक कंकड़, या सुपाड़ी डाल लो". मुमकिन है की आपने अब तक सीख लिया हो कि इन बातों से कोई मदद नहीं मिलती - उलटे ये आपकी समस्या को बदतर ही बनाते हैं ।
ये 'प्रसिद्ध' उपचार क्यों असफल हैं, इसका एक अच्छा कारण है: ये सभी हकलाने को दबाते हैं, छुपाते हैं, आपको कुछ कृत्रिम (आर्टिफीसियल) करने को मजबूर करते हैं । और, इस तरह आप हकलाने से जितना बचने का प्रयास करते है - जितना उसे दबाते है- आप उतना ही ज्यादा हकलाते हैं ।

आपका हकलाना एक हिमशैल की तरह है. सतह से ऊपर, लोगों को क्या दिखता और सुनाई पड़ता है - वह वास्तव में समस्या का बहुत छोटा हिस्सा है. जो वास्तव में बड़ी समस्या है, वह है - शर्म, डर, ग्लानि, तथा वह सभी अन्य नकारात्मक भावनाएं जो हमारे अवचेतन मन में बैठ जाती है, जब हम एक साधारण वाक्य बोलने की कोशिश करते हैं और नहीं बोल पाते ।

शायद मेरी तरह आप भी सारी जिंदगी इस हिमखंड को छुपाने में लगे रहे है? आपने भी एक धाराप्रवाह वक्ता होने का दिखावा निरंतर किया है? ब्लॉक को छुपाने की जी तोड़ कोशिश? एक ऐसा प्रयास जो अकसर आपके और आपके श्रोता के लिए तकलीफदेह रहा है ? आप इस जाली भूमिका से  थक गए है? यहां तक ​​कि, जब ये तरकीबे काम करती है तब भी आप बहुत खुश नहीं होते - और जब ये असफल होती है तब तो आप को निश्चित रूप से बेहद बुरा लगता है ।  फिर भी आप शायद यह नहीं जानते कि यह सारा छुपाना और दबाना ही आपके हकलाने के दुष्चक्र को निरंतर जारी रखता है ।

मनोवैज्ञानिक और भाषण प्रयोगशालाओं में हमें सबूत मिले है कि हकलाना एक संघर्ष है, एक विशेष संघर्ष - आगे बढ़ना और डर से पीछे हटना -. आप बोलना चाहते हैं, लेकिन डर के मारे चुप भी रहना चाहते है । यही उहापोह, यही अनिश्चितता, हकलाने की जड़ में छुपी है । आपके डर के कई स्रोत और स्तर है ।  सबसे ऊपर हकलाने का डर और दबाव ही है और शायद यह उन कारकों का परिणाम है जिनकी वज़ह से आपका हकलाना पहली बार शुरू हुआ ।


हकलाने का डर पैदा होता है शर्म और घृणा से- आप अपने बोलने के तरीके से घृणा करते है और इस तरह एक दुश्चक्र शुरू होता है और जारी रहता है । यह डर और शर्म इस बात पर आधारित है कि आप रोज़ एक नकली भूमिका निभा रहे है: कौन मै ? नही मै तो नही हकलाता ..। 


आप अगर हिम्मत करे तो इस डर के बारे में कुछ कर सकते हैं । आप अपने हकलाने के बारे में थोडा पारदर्शी हो सकते है. आप आगे बढ़ कर जो चाहे बोल सकते हैं, हकलाने के बावजूद । डर पर विजय पा कर आप अपने सच्चे स्वरुप को पेश कर सकते है और नित्य प्रति "जो नही है वह दिखने की" मज़बूरी से आजाद हो सकते है. इस तरह आप उस असुरक्षा के भाव से मुक्त हो जायेंगे जो इस तरह के 'अभिनय' से निरंतर पैदा होती रहती है । आप सतह के नीचे हिमशैल के छिपे हिस्से को कम कर पायेंगे । और यह हिस्सा आपकी समस्या का वह हिस्सा है जिसे सर्वप्रथम ठीक किये जाने की सख्त जरुरत है । बस आप जैसे है वैसा स्वयं को पेश करे और अपने हकलाने के बारे में खुल कर बात करे- मात्र इतना ही आपको तनाव से बेहद राहत पहुचायेगा।

यहाँ दो महत्त्वपूर्ण मगर रहस्यमय सिद्धांत हैं जो अगर आप समझ लें तो वे आपको बहुत लाभ पहुंचा सकते हैं -

    प्रथम - आपका हकलाना आपका कोई नुक्सान नहीं करता, वह आपका दुश्मन नहीं है, सच पूछो तो । दूसरे - फ़्लुएन्सी आपके किसी काम की नही । यानी हकलाना न आपका दुश्मन है, न फ़्लुएन्सी आपकी दोस्त - सच्चे अर्थों में । इनसे न तो कोई काम बिगड़ता है और न ही बनता है। न तो हकलाने के लिए आपको शर्मिन्दा होने की जरुरत है और न ही अपनी फ़्लुएन्सी पर गर्व करने की। 
   
अधिकांश हकलाने वाले, जब ब्लॉक में होते हैं, तो वे बेहद संघर्ष करते हैं, जोर लगाते हैं - क्योकि उन्हें ब्लॉक एक बड़ी और व्यक्तिगत विफलता जैसा प्रतीत होता है । इस डर से वे हर समय ज्यादा चौकन्ने रहते है और संघर्ष करते हैं । जितना वे संघर्ष करते हैं- हकलाना उतना ही बढ़ता है | वे खुद को निरंतर एक दुष्चक्र में धकेलते चले जाते है । यह दुष्चक्र कुछ इस प्रकार है -हकलाहट -> डर -> घृणा, शर्म  -> छुपाने की प्रवृत्ति  -> अपराधबोध

हकलाने का अनुभव एक नितांत अकेलेपन का अनुभव है। आप शायद ज्यादा हकलाने वालों से मिले नहीं हैं - और कुछ जिनसे आप मिले भी होंगे, उनसे आपने प्लेग की तरह अपना दामन बचाया होगा ! जैसे आप काफ़ी हद तक अपने हकलाने को छिपा लेते हैं- वैसा ही दूसरे भी कर रहे है और इस लिए मुमकिन है आप को एहसास भी न हो कि दुनिया की १% आबादी हकलाती है - खुद अमेरिका में लगभग १५ लाख लोग हकलाते हैं ! विश्व में कई प्रसिद्ध लोगों को यही समस्या थी : मूसा, देमोस्थेनीज, चार्ल्स लैम्ब और इंग्लैंड के चार्ल्स प्रथम आदि । अभी हाल में, इंग्लैंड के जॉर्ज पंचम, सोमरसेट मॉम, मर्लिन मुनरो और टीवी व्यक्तित्व गैरी मूर और जैक पार जैसे व्यक्ति भी जीवन में किसी समय हकलाते थे। अपने बोलने की समस्या में, आप न तो कोई अजूबा है और ना ही उतने अकेले जितना आपने सोचा था ।

प्रत्येक हकलाने वाले वयस्क की अपनी एक व्यक्तिगत शैली है, जिसमे बहुत सी "अवोएडेन्स" (छिपाने की प्रवृत्ति) और ट्रिक्स शामिल हैं - पर यह सभी एक गहरे भय पर आधारित हैं और इन्होने एक बैसाखी का रूप ले लिया है, जिसके बगैर आपका काम बिलकुल नही चलता। चाहे "मै हकलाता हूं" कहें या "मै रुकता हूं" - समस्या एक ही है - एक गहरे डर पर आधारित। हकलाना या ना हकलाना आपके बस में नही है- मगर आप कैसे हकलाते हैं- यह जरूर आपके हाथ में है । और यह बहुत महत्त्वपूर्ण भी है ! बहुत से हकलाने वालों ने, और खुद मैंने भी, बगैर संघर्ष, बगैर तनाव के आराम से हकलाते हुए अपनी बात कहते चले जाने की कला सीख ली है । इसके लिए जरुरी है - पारदर्शिता : जैसे हैं वैसा ही अपने को पेश करना, अपने छिपे हिमखंड (डर व शर्म) को उजागर करना, सामने वाले की आँखों में शांत मन से देखना, जब ब्लॉक में हो तो संघर्ष न करना, एक बार शुरू करने पर अपनी बात पूरी करना, शब्दों और स्थितियों से मुह न चुराना - और सर्वोपरि, हकलाते हुए भी अपनी बात कहने का साहस रखना । इलाज की किसी भी रणनीति में इन बातो का बेहद महत्त्व है । 

हां, आप हकलाते हुए अपनी इस समस्या से बाहर निकल सकते हैं !! तो जब तक आप शर्म, घृणा और अपराध के साथ अपने हकलाने को देखते रहेंगे - आप बोलने की प्रक्रिया से भी डरते रहेंगे।  यह भय, "अवोएडेन्स" और अपराधबोध आपके हकलाने को और अधिक बढ़ा देगा। बहुत से वयस्क अपनी बहुत मदद कर सकते है बस अगर वे अपने डर और नफरत को कम कर पाते।

क्योंकि आप हकलाते है इसका मतलब यह नहीं है कि आप अन्य व्यक्ति से ज्यादा maladjusted या न्युरोटिक हैं. व्यक्तित्व अध्ययन के आधुनिक तरीकों का उपयोग कर अनुसंधान से साबित हुआ है की हकलाने वालो का कोई विशिष्ट व्यक्तित्व पैटर्न नही है । आप हर मायने में "नॉर्मल" हैं। अगर आप इस बात को समझ ले और इस पर यकीन करें तो मुमकिन है की आप स्वयं को बेहतर स्वीकार कर सके और आपका जीवन ज्यादा खुला और आरामदेह बन सके।

यदि आप इस देश (अमेरिका) में पंद्रह लाख हकलाने वालो के समान हैं, तो चिकित्सीय उपचार आप के लिए उपलब्ध नहीं होगा! आप को सब कुछ अपने दम पर ही करना होगा - उन विचारों और स्रोतों का उपयोग करना होगा जो आपको उपलब्ध हैं।  मुद्दा यह नहीं है कि आत्म उपचार वांछनीय है या नहीं। मुद्दा यह है कि सही क्लिनिकल उपचार आपको मिलेगा या नही। ज्यादातर मामलों में क्लिनिकल उपचार (स्पीच थिरेपी) से आप बेहतर व्यवस्थित प्रगति कर पाते है - विशेष रूप से अगर आप उन लोगो में हैं, जो हकलाने के साथ साथ, व्यक्तित्व और भावनात्मक समस्याओं से भी जूझ रहे हैं. एक मायने में, हर हकलाने वाला अपना इलाज खुद करने की कोशिश करता है। मगर उसे एक तरीके, एक रणनीति की जरुरत है। कुछ व्यक्तियों को, सही दिशा मिलने पर वे खुद ब खुद काफी प्रगति कर पाते हैं. दूसरों को संभवतः और अधिक व्यापक और औपचारिक स्पीच थिरेपी या मनोचिकित्सा की जरूरत पड़ती है.

हकलाने वालों को जो बहुतायत से सुझाव दिए जाते हैं उनसे कहीं ज्यादा व्यावहारिक और सहायतापूर्ण विचार मैंने नीचे रखे है:इसे आप इस तरह लें - अगली बार जब आप किसी दुकान में जायें या टेलीफोन पर बात करें - तो अपना कलेजा सख्त करें और देखें कि आप अपने डर से कितना जूझ सकते हैं। देखें क्या  आप अपने ब्लॉक को शांति से स्वीकार कर पाते हैं ? ताकि आपका श्रोता भी आपके ब्लॉको को शान्ति से स्वीकार कर सके? अन्य सभी परिस्थितियों में देखे कि क्या आप खुले तौर पर, कुछ समय के लिए ही सही, एक हकलाने वाले इंसान की भूमिका स्वीकार कर पाते हैं? क्या आप अपने श्रोता को यकीन दिला पाते हैं कि हकलाने के बावजूद आप अपनी बात उसे समझाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं? कि आप हकालने को अपने और उसके बीच संवाद में आड़े न आने देंगे?

क्या आप उस हद तक जा सकते हैं जहां आपके मन में अपने हकलाने को छिपाने, दबाने की प्रवृत्ति लेशमात्र भी न बचे, भले ही मौका कितना ही "महत्त्वपूर्ण" क्यों न हो? और जब हकलायें तो ऐसे हकलायें, जैसे कुछ हुआ ही नही? क्या आप परफेक्ट बोलने की जिद छोड़ सकते हैं? सच तो यह है की अगर आप हकलाते हुए वयस्क हुए हैं तो संभावना है कि किसी न किसी रूप में, कमोबेस हकलाना आपके साथ रहेगा- मगर जैसे हकले आप इस समय है, वैसा ही हमेशा बने रहने की कोई मज़बूरी नही है । आप थोड़े से प्रयास से अपनी समस्या से निजात पा सकते हैं। 
उम्र महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन भावनात्मक परिपक्वता जरूर महत्वपूर्ण है. हमारे क्लिनिकल रिकॉर्ड में  सबसे सफल केस एक 78 साल आयु के सेवानिवृत्त बैंड मास्टर का है। उन्होंने कसम खाई कि  मरने से पहले मैं अपने हकलाने पर विजय प्राप्त करूँगा और उन्होंने ऐसा ही किया।

सारांश में देखे तो प्रश्न सिर्फ यह हैं, कि आप अपने हिमशैल को सतह से कितना ऊपर ला सकते हैं? जब आप उस मुकाम पर पहुँच जायें जहां आप अपने श्रोता से कुछ भी नहीं छुपा रहे हैं, तो आप पायेंगे कि  समस्या नाम की कोई चीज़ आपके पास बची नही है। हकलाते हुए आप इस समस्या से बाहर आ सकते हैं, बशर्ते आप में हिम्मत और खुलापन हो।

According to Shivkheera --- "If you think that I can do it, then you can do it, if you think that I can not do it, then you can not do it, you are right in both conditions 

शिवखेड़ाj जी कहते है की    ----

"अगर आप सोचते है की मै कर सकता हूँ, तो आप कर सकते है , यदि आप सोचते  है  की  मैi नहीं  कर  सकता  तो  आप  नहीं  कर  सकते  है    आप  दोनों कंडीशन  में  सही है  -----

        What is stammering

Your soul believes then that the weakness of our greatest speech is stammering, but your mind tells you to speak right. Your self-confidence and right-to-speak, being a quarrel or a confrontation between the mind, trying to speak good, thinking of not stopping, is a stammering. The stammering does not happen from birth, but for some reason in the childhood, the baby's respiration system weakens, it starts and the gap between the lung decreases, thus the child's external respiration becomes weak and the child is arrested -walking begins to speak. The child does not want to stop and speak. He has no knowledge of reality, he is stuck-in-the-speak Rather than speaking a weak respiration system, it starts to speak too much. Speaking more increases the speed of the child, and it stops due to the increase of speech. This stopping is called stammering  only.in other word we can define to stammering  "The result of not getting praper combination in speech organ, brain, and desire, is stammering.
Stubbornness in religious and mythological texts has been called Gadgad. In fact the stammering does not happen in the tongue or in the mouth but in the brain. Stutter is of the following type. Stammering varies tremendously from person to person and is highly variable for the person who stammers who may be fluent one minute and struggling to speak the next           

                         लोग क्यो हकलाते है ?
इसे महज एक बुरी आदत मानना गलत है सच्चाई यह है कि यह एक न्यूरोलॉजिकल समस्या है,जिसमे कुछ ध्वनियों का उच्चारण न सिर्फ मुश्किल कई बार असंभव हों जाता है। जब मसितष्क से ध्वनि के लिये विहुत तरंगे नही पहुचती है तो हमारा कंठ पिछली ही ध्वनि को दोहराता रहता है कभी -कभी गला पूरी तरह ब्लाक हो जाता है ,न ही हवा बाहर निकलता और न ही ध्वनि। एक हकलाने वाले व्यवित के शब्दों में जैसे कि जबड़ा जुबान ,मुँह और कंठ सभी एक पल को जकड़ गये है ,परिणामस्वरूप व्यवित शब्दों को बाहर धकेलने के लिये एक संघर्ष शुरु कर देता है। यह संघर्ष प्रायः चेहरे सिर व बदन में दिखाई पड़ता है जैसे आँखो का झपकना ,चेहरे का एकतरफ ऐठ जाना ,सिर व हाथों का हिलाना ,पाँव पटकना आदि। शुरू में हमने सम्भवतः इन व्यवहारों का प्रयोग था ब्लाकेज से बासर समस्याओं को देती है। मसितष्क के स्केंन द्धारा अध्ययन से पता चला है कि एक हकलाने और एक सामान्य व्यवित जब चुप रहते है, तो उनके में कोई अंतर नही होता लेकिन जब हकलाने वाले बोलने लगते है तो उनकी बाया मसितष्क भय चिंता व अन्य भावनाओं से जुड़ा होता है। कुछ वर्षा पहले तक यह माना जाता था कि बोलने की प्रतिकिर्या पर नियंत्रण करने के लिये दाए व बाए मसितष्क पर संघर्ष होता है जिसके करण हकलाने वाले अटकते है पर अब यह माना जाता है कि दाए मसितष्क का सकिर्य हो जाना हकलाने का कारण नही है बलिक संभवतः उसका परिणाम है। से जुडी तमाम नकारात्मक भावनाएॅ जैसे डर ,शर्म ,आदि बोलने के क्षणों में एक एक सकिय हो जाती है और स्केन के दौरान दाए मसितष्क की हरकत के रूप में दिखाई पड़ती है। हम बोलते समय अपने शब्दों को जैसे डर हम बोलते समय अपने शब्दों को जैसे सुनते है और गले और मुँह की मांसपेशियों को करते हुये जैसा महसूस करते है ,इन दोनो के बीच में तालमेल मसितष्क का एक विशेष आग बैठता है जिसे सेन्ट्रल ऑडिटरी पोर्सेसिंग एरिया कहते है। यह अंग हकलाने के दौरान निषिक्रय हो जाता है। अन्य शब्दों मे अपने शब्दों को चुनना और उसके अनुसार उच्चारण की विभिन्न मांस शेश्यो का तालमेल बैठाना गड़बड़ा जाता है। कुछ बैज्ञानिक बेसल गैगलिया (काडेट न्युबिलयस )में डोपामिन की अधिक्ता को एक कारण मानते है। मसितष्क का यह अंग हमारे विचारेको ध्वनि में बदलने के लिये उपयोग किया जाता है।

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